फिर मिले हैं हम
बुढापे की कगार पर खड़े,
अपने आप को ठरकी कहने वाले।
कुछ दोस्त मिले हैं फिर आज।
आँखों की रोशनी शायद धुंधलाने लगी हो,
मोटापे की मार से शायद परेशान भी हो।
बालों मे भले सुनहरे परत चढे हो।
लेकिन दिल से जवां है सारे।
बचपन इनके रगों में दौड़ता है।
सुकून, बचपन की यादों में खोजता है।
आज, फिर से वे सारे मिले है।
कह दो तारों को
आज रात उन्हें जागना होगा।
चन्दा को
अपनी चांदनी लिये ठहरना होगा।
हवाओं को आज
मतवाले सुर लिए बहना होगा।
क्योंकि
दोस्ती की यह बेमिसाल जश्न जो आज होगा।
बचपन से आज बचपन की मुलाकात जो होगी।
किस्सों की लड़ी से दिवाली जैसी रोशनी जो होगी।
उम्र के बढते कदम पर ठहाकों की बेड़ियाँ डाले जाएंगे।
कल कि फिक्र को जाम मे डुबोया जाएगा।
क्योंकि आज फिर मिले है दोस्त सारे।
आज फिर, मिले हैं दोस्त सारे।
मेरे बचपन के स्कूल के सभी दोस्तों को समर्पित
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